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वो माँ अब भी वहीँ है
February 7, 2017
Ankita Jain
Poems
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कल फिर उसने मुझे सीने से लगाया,
सर पर हाथ फेरकर गोद में सुलाया !
तब मुझे इक बार फिर मेरा बचपन याद आया,
और मन में सिर्फ यही ख्याल आया !
कि जब वक़्त के साथ उसकी ममता नहीं बदलती,
तो फिर हम क्यूँ बदल जाते हैं !
उसके अपनेपन और सलाह की तख्ती पर,
क्यूँ हमे बंधन नज़र आते हैं !
वो तो बस इतना ही चाहती है ना कि,
हमें कभी तकलीफ न हो !
हमारे होठों पर सदा मुस्कान रहे,
और आँखें कभी नम न हों !
तो फिर क्यूँ हम खुशियों की तलाश में,
उसे पीछे छोड़ जाते हैं !
कभी उसने भी हमारे लिए अपनी खुशियों को रोंदा था,
क्यूँ हम ये हमेशा ये भूल जाते हैं !
उसकी कुर्वानियों को हमें फ़र्ज़ का नाम देने में,
देर नहीं लगती !
मगर हमारे फ़र्ज़ में सदा हमें,
मुसीबत है दिखती !
कितनी आसानी से भूल जाते हैं कि,
वो हमारे लिए सारी-सारी रात जागी है !
और हमें अगर एक रात भी जागना पड़े,
तो बुढ़िया परेशान करती है !
उसे न बैंक बैलेंस चाहिए, न हर महीने पगार,
उसे तो सिर्फ उसका लाल चाहिए जो उससे करे प्यार !
मेरी इस कविता का मकसद किसी की उलाहना करना नहीं है,
मगर ये सिर्फ पक्तियाँ नहीं हैं,
समझोगे तो पाओगे कि वो “माँ” अब भी वहीं है !
ज़्यादा कुछ नहीं सिर्फ उसे प्यार से गले ही तो लगाना है,
क्यूंकि यही सिर्फ इक रास्ता है अगर मरने के बाद ज़न्नत पाना है !!
– अंकिता जैन
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