बहुत दिनों से तुम पर कुछ लिखा नहीं,
सोचा आज फिर,
कलम और तुम्हारी बातें करवा दूँ,
तुम हकीक़त कब बनोगे,
ये सवाल है वही,
फिर भी आज दोबारा जज़बातों से,
तुम्हारी मुलाक़ातें करवा दूँ,
वक़्त का तो पूछो मत,
अब भी हाल है वही,
हर रोज़ इंतज़ार की खबर दे,
आगे बढ़ जाता है,
मुकद्दर के डाकिये के झोले में हर रोज़,
एक ख़त मेरा तुम्हारे नाम,
युहीं पड़ा-पड़ा सड़ जाता है,
ये तुम तक कब पहुँचेंगे,
ये सवाल है वही,
फिर भी, आज दोबारा इन्हें तुम्हें,
मौखाद सुना दूँ,
बहुत दिनों से तुम पर कुछ लिखा नहीं था,
सोचा आज फिर,
कलम और तुम्हारी बातें करवा दूँ……..अंकिता !!