बचपन में मेरे बाबा मुझे एक बात से बहुत चिढ़ाते थे कहते थे “हमने हमारे बच्चों को घी खिलाया … हमारे बच्चे तुम्हे तेल खिल रहे हैं … और तुम तुम्हारे बच्चों को घासलेट खिलाओगे .. !!” .. उस वक़्त मुझे उनकी बात से गुस्सा आता था और मैं ये कहकर वो मासूम लड़ाई जीतने की कोशिश करती थी कि नहीं बाबा आप देख लेना हम भी हमारे बच्चों को घी ही खिलाएंगे और वो मेरे बाल मन की मासूमियत समझकर मुस्कुराकर मुझे वो लड़ाई जिता देते थे ……… लेकिन आज उसका असली मतलब समझ आता है … हमारे माता-पिता गाँव में पले-बड़े जहाँ उन्हें शुद्ध और ताज़ा मौसमी सब्जियाँ और फल मिलते थे, गाय-भैंस का ताज़ा दूध, ताज़ी हवा, खेल के नाम पर गली का क्रिकेट या गुल्ली डंडा, सेहत के नाम पर कुएं से पानी भरना, आटा पीसना, घर के काम करना वगेरह वगेरह … जिनसे उनका शरीर इतना मजबूत बना कि आज भी 50 की उम्र पार करने के बाद भी वो उतनी ही स्फूर्ति से काम करते हैं जितनी शायद हम इस उम्र में नहीं कर पाते, बुद्धि का विकास इतना कि उनके समय में पढ़े हुए गणित के सहारे वो आज की इंजीनियरिंग के बच्चों की गणित पढ़ा देते हैं ….
पर समय बदला … हम थोड़े से बड़े शहरों में पले-बड़े .. जहाँ फल-सब्जियाँ मौसमी तो होती थीं लेकिन ताज़ा नहीं क्योंकि गाँव से हमारे शहरों तक आने में उन्हें समय लगता था, दूध वाले अंकल को कई बार किसी हैंडपंप के नीचे दूध में पानी मिलाते देखा है … ताज़ी हवा में पेट्रोल और फैक्ट्रीज का धुआं मिलाने लगा, खेल के नाम पर विडियो गेम आ गए थे … हाँ थोड़ा बहुत हमने भी बाहर खेला होगा लेकिन इस सबसे हमारा शरीर उतना परिपक्व नहीं बन पाया जितना हमारे माता-पिता का है, हमें अपनी शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए अलग से मेहनत करनी पढ़ती है वर्ना 1 किलोमीटर पैदल चलने में ही हवा टाइट हो जाती है ….
और अब आने वाली पीढ़ी को भगवान् ही बचाए …. पहले कम से कम फल-सब्जियाँ बासी होती थीं लेकिन प्राकृतिक होती थीं … पर अब हर सब्जी को इंजेक्शन से मौसमी बना दिया जाता, केमिकल्स से उन्हें ताज़ा बना दिया जाता है, दूध पैकेट्स में हमारे घरों तक पहुँचते-पहुँचते ना जाने कितने दिन पुराना और कितने केमिकल्स से मिला हो जाता है, हवा के नाम पर सिर्फ धुआं मिलता है, खेल के नाम पर मोबाइल, लैपटॉप, विडियो गेम और बाकि स्कूल के बोझ से कुछ और खेलने का समय नहीं मिलता …. हाँ कसरत नए रूप में आ गयी है जिसमे AC लगाकर जिम में मेहनत की जाती है …. पता नहीं क्या बचेगा हमारे शरीर में जो हमें हमारे बुजुर्गों सी स्फूर्ति दे पायेगा …. सोचने की बात है ।।
आज फर्क समझ आया बाबा के घी, तेल और घासलेट का …………