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एक मुलाक़ात – अंकिता जैन

February 3, 2017Ankita JainStoriesNo Comments

भाग -1

अरे हट जाओ सामने से, क्यों आज सब मेरी ही गाड़ी के आगे आ रहे हैं, अभी कोई भिड़ गया तो मारे जायगें । अरे भैया हट जाओ । सिमरन फुल स्पीड में अपनी दुपहिया हौंडा एक्टिवा उस छोटे से शहर के मेन चौराहे से गुज़ारते हुए स्टेशन की तरफ लेजा रही थी। जितनी तेज़ी से उसकी गाड़ी बढ़ रही थी उतनी ही दम के साथ वो हॉर्न बजा रही थी, मानो हॉर्न जोर से बजाने से वो अपनी निर्धारित आवाज़ से ज्यादा आवाज़ करने लगता । पीछे बैठी शैली जैसे हॉर्न की आवाज़ को नगण्य मानते हुए, अरे हट जाओ, अरे हट जाओ हॉर्न की धुन में धुन मिलाते हुए चिल्ला रही थी।

“दीदी अब क्या होगा सिर्फ 5 मिनिट बचे हैं और ये ट्रैफिक”, शैली रोनी सी आवाज़ में बोली “कैसे पहुँचेंगे हम, ट्रेन छूट गयी तो मेरा कल एग्जाम छूट जायेगा”

“अरे रो मत”, सिमरन ने डाँटते हुए बोला, “पहुँच जाएगी, और अब मुझे गाड़ी चलाने दे, वैसे ही तो ये अंधे बेहरे लोग गाड़ी के सामने आ रहे हैं”

सिमरन ने गाड़ी के एक्सीलरेटर पर फिर से हाथ घुमाया और लहराते हुए गाड़ी हवा में उड़ा दी। स्टेशन ज्यादा दूर नहीं था इसलिए 5 मिनिट में गाड़ी स्टेशन के सामने जाकर खड़ी हो गयी। सिमरन ने गाड़ी स्टैंड में लगाते हुए बोला, “शैली तू भाग, मैं गाड़ी लगाकर आती हूँ”

“हाँ दीदी” शैली ने अपना छोटा सा पिट्ठू बैग संभाला और प्लेटफार्म की तरफ भागी।

“अरे बोग्गी नंबर और सीट नंबर तो याद है ना”, सिमरन पीछे से चिल्लाई

“हाँ दीदी याद है”  भागते-भागते शैली ने जवाब दिया और फिर पूरी रफ़्तार से प्लेटफार्म की तरफ दौड़ लगादी। प्लेटफार्म पर पहुँचते ही देखा तो ट्रेन अभी प्लेटफार्म पर आ ही रही थी। शैली की जान में जान आई कि वह लेट नहीं हुई। ट्रेन का स्टोपेज 15 मिनिट का था इसलिए उसने आराम से अपना डब्बा ढूंढा और फिर अपनी सीट पर जाकर बैग रख दिया। इतने में सिमरन भी गाड़ी स्टैंड में लगाकर आ चुकी थी। शैली के डब्बे के बाहर आकर उसकी सीट के पास वाली खिड़की पर खड़ी हो गयी।

“बैग अच्छे से रख दिया” सिमरन बोली

“हाँ दीदी”, शैली खिड़की के पास आकर बैठते हुए बोली, “आज तो बच गए, 5 मिनिट और लेट हो जाते तो”

“तो क्या,” सिमरन शैली को चुप कराते हुए बोली, “तो कुछ नहीं, अब पहुँच गयी ना, शांत होजा और थैंक यू बोल, टाइम पर पहुँचा’ दिया मैंने”

“भाग जा”, शैली ने चटखारी भरते हुए कहा, “ये तो तेरा फ़र्ज़ था, बड़ी बहिन है इतना तो करना बनता है”

“हा हा हा” दोनों खिलखिलाकर हँसने लगीं। थोड़ी देर तक ऐसे ही दोनों में हँसी-ठिठोली चलती रही फिर ट्रेन ने हॉर्न देकर अपने जाने की सूचना देदी।

सिमरन ने शैली को एक्साम्स के लिए विश किया और हाथ हिलाकर अलविदा कहने लगी। थोड़ी देर में ट्रेन उसकी नज़रों से ओझल हो गयी और वो भी स्टेशन से बाहर आने के लिए मुड़ गयी। अभी बुक स्टाल तक पहुँची ही थी कि किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखकर “सिमरन” पुकारा, सिमरन थोड़ी घबरायी सी पीछे मुड़ी। आवाज़ सुनने से पीछे मुड़ने तक ना जाने कितने ही ख़याल उसके मन में कौंध गए कि इस तरह कौन हो सकता है जो मेरे कंधे पर हाथ रखकर मेरा नाम पुकारेगा, आवाज़ भी जानी पहचानी नहीं है, खैर पलटकर देखने पर ही पता चलेगा।

भाग – 2

सिमरन पीछे मुड़ी और जो चेहरा उसके सामने आया उसे देखकर सिमरन आश्चर्यचकित थी।

अपनी उत्सुकता को छुपा नहीं पायी और मुंह से निकला “तुम…तुम यहाँ”

“हाँ मैं यहाँ…” उस सख्स ने कहा, “आख़िर तुम्हे ढूँढ ही लिया !

“हाँ 13 साल लगा दिए ढूँढने में” सिमरन एक अजीब सी मुस्कराहट के साथ बोली, “मगर तुम यहाँ क्या कर रहे हो”

“जिस ट्रेन से तुम अपनी बहिन को छोड़ने आई थीं मैं उसी ट्रेन से आगे जा रहा था, अचानक तुम दिखीं तो यहीं उतर गया” उस सख्स ने मुस्कुराते हुए बोला

“ओह तो तुमने मुझे पहचान लिया”, सिमरन मुस्कुरायी “मुझे तो लगा था साहिल, तुम अब तक मुझे भूल चुके होगे”

साहिल, सिमरन अपनी ज़ुबान पर आज फिर एक बार साहिल का नाम लेकर अचंभित भी थी और शायद ख़ुश भी। ये ख़ुशी उससे 13 साल बाद मिलने की थी या फिर ज़िन्दगी में पहली बार उससे इतने करीब से रूबरू होने की, या फिर उसकी आवाज़ को पहली बार इतने करीब से सुनने की। सिमरन ना कुछ सोच पा रही थी ना समझ पा रही थी, मगर वो ख़ुश थी और उसकी ये ख़ुशी उसके चेहरे पर साफ़ दिख रही थी।

“तुम्हे भुलाना इतना आसान नहीं है सिमरन” साहिल के इस जवाब से सिमरन वापस ख़यालों से बाहर आई और मुस्कुरा दी।

“अच्छा अब यही खड़े-खड़े बात करोगी या कहीं बैठ सकते हैं” साहिल ने अपनी पूरानी आदत में अपनी एक भोंह ऊपर चढ़ाते हुए कहा

“हाँ, क्यूँ नहीं”, सिमरन बोली, “मैं बस माँ को फ़ोन करके कह दूँ कि मुझे आने में थोड़ी देर हो जाएगी”

“हाँ ज़रूर”

सिमरन ने अपनी माँ को फ़ोन किया और फिर दोनों स्टेशन के ही वेटिंग रूम में जाकर बैठ गए।

साहिल सिमरन को देख रहा था और सिमरन उससे नज़रें चुराने की कोशिश कर रही थी।

“क्या तुम मुझसे अब भी नाराज़ हो ?” साहिल ने ख़ामोशी को तोड़ते हुए कहा

“नहीं”, सिमरन ने धीरे से बोला, “लेकिन मैं जानना ज़रूर चाहती हूँ कि जो हुआ उसमें कितना सच था और कितना झूठ”

कुछ देर तक साहिल चुप रहा, दोनों के बीच ख़ामोशी थी। 13 साल पहले सिमरन की ज़िन्दगी में साहिल की वजह से घटी एक घटना ने उसकी ज़िन्दगी में बहुत कुछ बदला था। उससे उसके पिता का भरोसा, प्रेम जैसे अहसास से भरोसा और बाहर हॉस्टल में जाकर उसकी पढ़ाई का अवसर, सब कुछ साहिल की एक ग़लती ने उससे छीन लिया था।

सिमरन के पिता एक सरकारी कर्मचारी थे और एक उच्च पद पर थे। उनके तबादले पूरे भारत में कहीं भी होते, लेकिन अधिकतर छोटे कस्बों में ही होते थे। सिमरन के पिता पुराने ख़यालात के व्यक्ति थे और उनके घर में लड़कियों का लड़कों से दोस्ती करना अच्छा नहीं समझा जाता। वैसे सिमरन के पिता सिमरन और उसकी बहिन को बहुत प्यार करते थे, सारी आज़ादी देते, लेकिन बदलते माहौल और लड़कियों के साथ होने वाली दुर्घटनाओं की वजह से वे अपनी बेटियों को लड़कों से दूर ही रखना चाहते थे। लेकिन सिमरन के लिए किस्मत ने कुछ और ही सोच रखा था, इसलिए 13 साल पहले घटी एक घटना ने उसकी ज़िन्दगी में बहुत कुछ बदल दिया था।

भाग – 3

13 साल पहले सिमरन के पिता का तबादला उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कस्बे में हुआ। भारत में छोटे कस्बों और गावों में लड़के लड़कियों का आपस में दोस्ती रखना अच्छा नहीं माना जाता, और जो लड़की लड़कों से दोस्ती रखती है उसका चाल-चलन सही नहीं माना जाता। सिमरन के पिता नहीं चाहते थे कि उनकी बेटियों के बारे में कोई गलत बात हो इसलिए उन्होंने वहां आने से पहले ही सिमरन और उसकी छोटी बहिन को हिदायत दे दी थी कि किसी लड़के से दोस्ती मत करना। लेकिन “टीन ऐज” में कई बार इस तरह की हिदायतें अनसुनी कर दी जाती हैं। ऐसा ही कुछ सिमरन के साथ हुआ, हालाँकि उसका एडमिशन कस्बे के गर्ल्स स्कूल में ही यह सोचकर करवाया गया कि जब बेटी लड़कों के साथ पढ़ेगी नहीं तो दोस्ती भी नहीं हो पायेगी लेकिन स्कूल के मेन गेट के सामने ही बोयस स्कूल का गेट था, और इसी वजह से ना चाहते हुए भी लड़कियों को लड़कों का सामना आते जाते करना ही पड़ता था। सिमरन अपने नए स्कूल में जाने के लिए काफ़ी उत्साहित थी, यह उसका स्कूल में आखिरी साल भी था फिर वह कॉलेज में आने वाली थी और कॉलेज की पढ़ाई के लिए बाहर जाकर पढ़ने वाली थी, किसी बड़ी यूनिवर्सिटी में, किसी बड़े शहर में। सिमरन पढ़ने में बचपन से ही अच्छी थी और हमेशा अव्वल आती थी इसलिए उसके पिता भी चाहते कि वह बाहर जाकर उच्चशिक्षा ले।

स्कूल में एडमिशन होते ही सिमरन की कुछ दोस्त बन गयीं, सिमरन इससे पहले जहाँ से आई थी वहां वह को-एड स्कूल में पढ़ती थी, इसलिए उसकी दोस्त अक्सर उससे वहां के माहौल और लड़कों के बारे में पूछती रहतीं। इन्हीं सब बातों में तिमाही परीक्षा हो गयीं और उनमें सिमरन ने टॉप किया। बोयस स्कूल के लड़कों को गर्ल्स स्कूल की हर खबर होती थी, यह खबर भी पहुँच गयी कि गर्ल्स स्कूल में एक नयी लड़की आई है शहर से और उसने तिमाही परीक्षा में टॉप किया है। कुछ लड़कों ने सिमरन से दोस्ती करने की कोशिश भी की, लेकिन सिमरन ने कभी किसी की तरफ देखा भी नहीं। गाँव के लड़कों में सिमरन को कोई इंटरेस्ट नहीं था और उसे पापा से डर भी लगता था, अगर किसी ने भी पापा को कह दिया कि मैंने लड़कों से दोस्ती की है तो बहुत डांट पड़ेगी। इसलिए सिमरन ने पूरा मन बना लिया कि चाहे कुछ भी हो जाये वो लड़कों से बात नहीं करेगी।

 

“क्या कर रही हो सिमरन, पढ़ लो” सिमरन की माँ ने पीछे से आते हुए कहा, “कल से सिक्समंथली एक्साम्स हैं ना तुम्हारे”

“हाँ माँ पढ़ ही रही थी, बोर हो गयी थी तो सोचा थोड़ा हाट का तमाशा देख लूँ”

सिमरन के घर के सामने ही हर रविवार को हाट भरती थी, जिसमें आस-पास के गाँव के लोग आकर अपना सामन बेचते थे, सिमरन को बालकनी में खड़े होकर हाट देखना अच्छा लगता था, एक तरह से छोटा सा मेला ही भरता था वहां, अलग-अलग गाँव के कई सरे लोग, तरह-तरह की चीज़ें बेचने वहां आते थे। आज भी सिमरन बालकनी में खड़े होकर हाट का मज़ा ले रही थी, थोड़ी देर बार उसे महसूस हुआ कि कोई है जो उसे काफ़ी देर से देख रहा है, सिमरन ने उस तरफ नज़रें घुमायीं तो वो कोई नया चेहरा था। एक सुन्दर कद काठी वाला, स्मार्ट सा लड़का उसे देख रहा था। उस लड़के को देखकर सिमरन को लगा कि हो न हो यह किसी शहर से आया है, इसकी ड्रेसिंग स्टाइल और लुक्स देखकर नहीं लगता कि यह इस कस्बे का रहने वाला है। सिमरन भी नज़रें चुराकर उसे बार-बार देखनी लगी। किसी को देखने भर में इतना अच्छा लग सकता है ये अहसास सिमरन को पहली बार हो रहा था। वो कल के एग्जाम के बारे में भूलकर काफ़ी देर तक उस लड़के के साथ आँखों की लुका-छुपी खेलती रही। वो ख़ुद को इस सम्मोहन से बचा नहीं पा रही थी। लेकिन जब थोड़ी देर बाद माँ की आवाज़ आई तो वो हकीक़त में वापस लौटी और भागकर अन्दर आ गयी। अन्दर आकर सिमरन वापस अपनी पढ़ाई में लग गयी और एग्जाम की टेंशन में उस चेहरे को भूल गयी।

भाग – 4

अगले दिन एग्जाम हॉल से बाहर निकलते वक़्त सिमरन हमेशा की तरह बहुत ख़ुश थी, तभी पीछे से उसकी दोस्त अरसी ने आकर उसका हाथ पकड़ा और बोली –

“सुन मुझे तुझसे कुछ काम है”

“क्या हुआ इतनी परेशान सी क्यूँ लग रही है”

“अरे बात ही कुछ ऐसी है” अरसी ने अपने बैग से एक कागज का टुकड़ा निकालते हुए सिमरन के हाथ में थमा दिया, “ये ले तेरे लिए”

“मेरे लिए”, सिमरन थोड़ी आश्चर्यचकित होकर वो मुड़ा हुआ काग़ज खोलने लगी, “क्या है ये”

“तू ख़ुद ही पढ़ ले”

“हैलो सिमरन, मेरा नाम साहिल है, मैं वही हूँ जिससे कल तुम्हारी मुलाक़ात तुम्हारी बालकनी में हुई, क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगी ? यदि हाँ तो अरसी को अपना जवाब लिखकर दे देना”  

सिमरन ने डरकर वो लैटर ऐसे नीचे फेंक दिया जैसे वो कोई खतरनाक चीज़ हो। अरसी ने झट से वो लैटर उठाया और सिमरन पर चिल्लाई।

“पागल है क्या, किसी ने पढ़ लिया तो मर जाएगी, तेरा नाम लिखा है इसमें, वैसे भी वो तेरी पड़ोसी अनु तो मौका ढूँढती है तेरे बारे में कुछ भी बोलने का”

“पागल मैं नहीं, पागल तू है”, सिमरन अरसी पर भड़की, “तू ये लैटर लायी ही क्यूँ”

“वो मेरा कजिन है, कल ही मुंबई से आया है” अरसी बोली, “पीछे पड़ गया था कि तुझसे दोस्ती करनी है, तो मैं क्या करती”

“तू पागल है अरसी”

“अच्छा अभी ये लैटर रख और आराम से सोचकर जवाब लिखकर दे देना मुझे” अरसी ने लैटर फिर से सिमरन को थमाया और अपनी साइकिल निकालने चली गयी।

सिमरन को समझ नहीं आ रहा था कि वो ये लैटर छुपाएगी कहाँ, अगर माँ के हाथ लगा गया तो वो पापा को बतायेंगी और अगर पापा को पता चला तो बहुत डांट पड़ेगी। यही सोचते सोचते उसने अपनी साइकिल निकाली और घर की तरफ चल दी। रास्ते में एक जगह रूककर उसने लैटर को फाड़कर फेंक दिया। इतने छोटे टुकड़े किये कि कोई उसे फिर से जोड़कर पढ़ने की कोशिश भी न कर सके, और घर आ गयी।

घर आते ही सिमरन ने आज माँ को एग्जाम के बारे में कुछ भी नहीं बताया और सीधा अपने कमरे में चली गयी। कपड़े बदले और लेट गयी। उसके ज़हन में सिर्फ यही चल रहा था कि वो जवाब में क्या लिखे ? या क्या जवाब लिखे भी ? आकर्षित तो वो भी थी लेकिन अगर पापा को पता चल गया तो क्या होगा ? उसे अरसी पर बहुत गुस्सा आ रहा था, उसने साहिल की मदद ही क्यूँ की, नहीं करना चाहिए थी। सिमरन इन्ही ख़यालों में उलझी थी कि माँ ने आकर उसके सर पर हाथ फेरा ।

“एग्जाम अच्छा तो हुआ ना बेटा”, माँ ने पूछा “इतनी परेशान क्यूँ हो”

“कुछ नहीं माँ, बस थक गयी हूँ” सिमरन ने अनमने मन से जवाब दिया

“अच्छा कपड़े बदल लो” माँ ने उठते हुए बोला “मैं खाना लगाती हूँ, फिर खाना खाकर सो लेना”

“हाँ माँ आती हूँ”

उस दिन सिमरन का ना खाना खाने का मन था, न कुछ और करने का, जैसे तैसे उसने खाना खाया और कमरे में आकर लेट गयी। अब एग्जाम 2 दिन बाद था, ये दो दिन भी कुछ पढ़ाई में और कुछ उस लैटर को लेकर चिंता में निकल गए, लेकिन इन दो दिनों में सिमरन एक बार भी बालकनी में नहीं गयी। उसे डर था कि कहीं साहिल दिख गया तो। वो ना जाने क्यूँ उससे डर रही थी, भाग रही थी। इन दो दिनों में वो अपना मन बना चुकी थी कि वो साहिल को कोई जवाब नहीं देगी, उसे पूरी तरह से इगनोर करेगी।

भाग – 5

दो दिन बाद जब अगले एग्जाम के दिन सिमरन स्कूल पहुँची तो उसने अरसी से साफ़ कह दिया कि कह देना अपने भाई से, मैं उससे कोई दोस्ती नहीं करना चाहती और दोबारा मुझे लैटर भेजने की जुर्रत ना करे। अरसी ने भी हामी भर दी, लेकिन साहिल कहाँ मानने वाला था। उसने अगले एग्जाम में फिर से सिमरन को एक लैटर भेजा

“सिमरन मैं जनता हूँ कि तुम भी मुझसे दोस्ती करना चाहती हो, लेकिन इस छोटे से गाँव के माहौल और अपने पापा से डर रही हो, लेकिन सिमरन मेरा कोई ग़लत इरादा नहीं है, तुम एक अच्छी लड़की हो और अच्छे लोगों से दोस्ती करने में कोई बुराई तो नहीं, वैसे भी मैं यहाँ 1 महीने ही हूँ, फिर वापस मुंबई चला जाऊंगा, तुम भी यहाँ हमेशा के लिए नहीं हो, तो जब तुम किसी दूसरे बड़े शहर में जाओगी वहां मुझसे दोस्ती कंटिन्यू रख सकती हो…प्लीज सिमरन मैं सिर्फ तुमसे दोस्ती करना चाहता हूँ और कुछ नहीं”

इस बार साहिल ने जो लिखा उसे पढ़कर सिमरन ख़ुद को उसे जवाब लिखने से रोक नहीं पा रही थी, साहिल के प्रति उसका आकर्षण और दोस्ती करने की चाहत ने सिमरन को जवाब लिखने पर मजबूर कर दिया।

“साहिल तुम एक अच्छे लड़के हो, लेकिन इस गाँव का माहौल ऐसा नहीं है कि लड़के लडकियाँ आपस में दोस्ती करें। यहाँ ना हम मिल सकते हैं, ना फ़ोन पर बात कर सकते हैं तो फिर ऐसी दोस्ती का क्या मतलब….इसलिए तुम ये दोस्ती की बात छोड़ दो…विश यू गुड लक”

साहिल जवाब पढ़कर थोड़ा उदास हुआ लेकिन उसे लगा कि अगर वो थोड़ी और कोशिश करेगा तो सिमरन दोस्ती कर लेगी। इसलिए उसने फिर एक लैटर लिखा

“सिमरन भले ही हम मिल नहीं सकते, फ़ोन पर बात नहीं कर सकते, लेकिन दोस्ती के लिए मिलना या फ़ोन पर बात करना ज़रूरी नहीं है, हम लेटर्स के ज़रिये बात कर सकते हैं, मैं तुमसे बहुत सारी बातें करना चाहता हूँ, तुम्हारे बारे में जानना चाहता हूँ, अपने बारे में तुम्हे बताना चाहता हूँ, प्लीज सिमरन मान जाओ न, सिर्फ एक महीने की ही बात है”

 

चाहती तो सिमरन भी थी लेकिन डर की वजह से हिम्मत नहीं कर पा रही थी, लेकिन लैटर में जब उसने “सिर्फ एक महिना” पढ़ा तो उसे लगा कि कोई बुराई नहीं है, लेटर्स के बारे में किसी को पता चलेगा भी कैसे, क्योंकि वो सरे लेटर्स फाड़ देती है। उसने हिम्मत करके जवाब लिखा

“अच्छा ठीक है, मुझे तुम्हारी दोस्ती मंज़ूर है, बताओ क्या जानना चाहते हो मेरे बारे में और क्या बताना चाहते हो अपने बारे में “

सिमरन का जवाब पढ़कर साहिल की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था, वैसे तो साहिल सिमरन से 7 साल बड़ा था लेकिन सिमरन से दोस्ती करते वक़्त उसने इस ऐज गैप को बीच में नहीं आने दिया। और फिर ज़ारी हो गया सिलसिला लेटर्स का और अरसी बन गयी उनकी पोस्टमैन। कई बार साहिल स्कूल में रास्ते में आकर खड़ा हो जाता और सिमरन को देखता। सिमरन भी दूर से ही उसे देखती लेकिन साथ आ रही स्कूल की बाकि लड़कियों की वजह से दोनों ने कभी एक दूसरे से बात करने की कोशिश नहीं की। रोज़ लेटर्स के ज़रिये सिमरन कब साहिल के लिए प्यार महसूस करने लगी उसे पता भी नहीं चला, लेकिन उसके अलावा स्कूल की दूसरी लड़कियों ने भी इस प्यार की भनक लग गयी थी।

उस दिन सिमरन ट्यूशन पढ़कर वापस आई तो घर पर अनु को देखकर थोड़ा चौंक गयी।

 

भाग – 6

“अरे अनु तुम यहाँ” सिमरन ने थोड़ा हिचकिचाते हुए बोला

“हाँ वो आंटी ने बुलाया था” अनु बोली

सिमरन अपना बैग कमरे में रखकर आई तब तक पापा भी आ चुके थे, उसने हॉल में आते ही पापा को देखा तो उसे लगने लगा कि आज कुछ तो बात ज़रूर है, पापा दोपहर में घर पर, अनु भी आई है।

पापा ने आते ही अनु को बोला – “अनु बेटा अब तुम जाओ”

“जी अंकल” अनु ने इतना कहा और अपने घर चली गयी । अनु के जाते ही पापा ने दरवाज़ा लगाया और सिमरन की तरह देख चीखते हुए बोला

“आज से तुम्हारा स्कूल जाना बंद”

पापा की इतनी तेज़ आवाज़ सुनकर सिमरन डर गयी, उसकी आँखों में आंसू आ गए।

“लेकिन पापा हुआ क्या ?” सिमरन ने रोते हुए पूछा

“क्या हुआ?” पापा चीखते हुए बोले, “समझाकर लाया था तुम्हे, लड़कों से दोस्ती मत करना, यहाँ दोस्ती तो छोड़ो, इशक फ़रमाया जा रहा है वो भी एक मुसलमान लड़के से”

इतना सुनने के बाद सिमरन के पास कहने के लिए कुछ नहीं था, उसे लग रहा था कि अनु ने पापा को सब बताया होगा। उसे अनु पर बहुत गुस्सा आ रहा था। इतने में पापा ने माँ को आवाज़ लगायी और कहा – “लाना ज़रा इनका चिटठा”

इतना सुनते ही जैसे सिमरन के पैरों तले ज़मीन सरक गयी। उसे यकीन नहीं हो रहा था जो उसने सुना, क्या सच में पापा लैटर की ही बात कर रहे हैं, नहीं ये कैसे हो सकता है, मैंने तो एक भी लैटर नहीं रखा सारे फाड़ दिए थे।

माँ के हाथ से लैटर लेते हुए पापा ने सिमरन के मुंह पर फेंका – “क्या है ये”

सिमरन ने लैटर हाथ में लिया तो उसका रोना फूट गया, ये रोना इसलिए नहीं था कि पापा को उसके बारे में पता चल गया बल्कि इसलिए था क्योंकि ये लैटर उसी का आखिरी लैटर था जो उसने साहिल को लिखा था। उसे समझ आ गया था कि साहिल ने उसके साथ बेवफ़ाई की है, वरना ये लैटर पापा के पास तक नहीं पहुँचता।

तभी पापा बोले

“वो तो भला हो मोंटी का, जो उसने समय रहते बता दिया, वरना कल तो ये मैडम उस लफंगे से मिलने जा ही रहीं थी”

“मोंटी सर” सिमरन चोंकते हुए बोली

“हाँ मोंटी सर”, पापा की आवाज़ में अभी भी गुस्सा था, “मोंटी का दोस्त है वो, और उसे चटखारे लेकर तुम्हारा ये लैटर सुना रहा था कि देखो कौन कहता है कि सिमरन सीधी लड़की है, लड़कों से बात नहीं करती, ये देखो इस लैटर में उसने लिखा है कि वो मुझे पसंद करती है, और कल मिलने भी आएगी”

अब तक सिमरन पूरी तरह टूट चुकी थी, इतना बड़ा विश्वास घात हुआ था उसके साथ, उसे दुःख था कि एक ऐसे लड़के के लिए उसने अपने माँ-पापा का दिल दुखाया जो सिर्फ दूसरों के सामने उसका मज़ाक उड़ाने और चटखारे भरने के लिए उससे दोस्ती कर रहा था। उस दिन सिमरन पूरी रात रोती रही, उसे ख़ुद पर गुस्सा आ रहा था और साहिल से नफरत हो रही थी। उसके बाद सिमरन कुछ दिन तक स्कूल नहीं गयी। और फिर पापा ने वहां से तबादला करा लिया।

“सिमरन, सिमरन”, सिमरन की आँखों में आंसू देखकर साहिल ने उसे हिलाया, सिमरन अतीत में खोकर एक बार फिर उसी दर्द को महसूस कर रही थी। उसने साहिल से सिर्फ इतना कहा

“साहिल मैं नहीं जानती कि तुमने ये सब क्यूँ किया, लेकिन उस बात ने मेरी ज़िन्दगी बदल दी थी, मेरी आज़ादी छीन ली थी, मेरे माता-पिता के मन से मेरे लिया विश्वास छीन लिया था, मैंने तुम्हे दिल से चाहा था, और आजतक दिल में यही ख्वाहिश थी कि काश एक बार तुमसे रूबरू हो सकूँ, तुम्हारी आवाज़ सुन सकूँ, तुम्हारे सामने खड़े होकर रो सकूँ और तुम्हे बता सकूँ कि तुमने मुझे कितनी तकलीफ दी थी”

“सिमरन मैं जनता हूँ मुझसे ग़लती हुई है…प्लीज मुझे माफ़ करदो…तुमसे माफ़ी मांगने के लिए तुम्हे कहाँ-कहाँ नहीं ढूँढा, लेकिन तुमने अरसी से भी कांटेक्ट ख़त्म कर दिया था इसलिए तुम्हे ढूँढ नहीं पाया, आज 13 साल बीत गए हैं लेकिन तुम्हे खोकर तुम्हारी अहमियत पता चली थी…मुझे माफ़ करदो सिमरन”

“मैं तुमसे कभी नफरत कर ही नहीं पायी साहिल”

इतना कहकर सिमरन वहां से उठकर चली गयी, लेकिन आज उसके दिल का भारीपन ख़त्म हो गया था जो 13 सालों से उसके दिल पर बोझ बना था।

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Tags: Ankita Jain, अंकिता जैन, एक मुलाक़ात
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